Saturday 18 August 2007

सुमनजी ! वागाँ में पधारिया जाणे दुनिया में वास उड़ी


दन नागपंचमी को ने तारीख हे आज १८ अगस्त.हिन्दी कविता का घणामानेता कवि डाँ शिवमंगलसिंहजी सुमन को जनम दन.सुमनजी उज्जेण आया ने आखा मालवी मनख वई गिया. नरहरि पटेलजी की मालवी गीत की किताब सिपरा के किनारे में एक गीत सुमन जी पे हे...आज बाँचां और इण मालवी आत्मा के याद कराँ...मुजरो पेश कराँ.

सुमनजी! वागाँ में पधारया जाणे दुनिया में वास उडी़

नाम झगरपुर रोप लगायो,काची पाकी कलियाँ से लाड़ लड़ायो
सुमनजी ! पोथी में लिखाया,जाणे जिवड़ा में प्रीत जड़ी

मनख प्रेम का ओ भंडारी,मणियाँ लुटाई खोल पिटारी
सुमनजी ! बोले मीठा बोल जाणे घी में मिसरी डली

मालव धरती गेर गंभीरी, शिवमंगल की मन की नगरी
सुमनजी ! उज्जेणी में रम्या जाणे जोगीड़ा की जोग धुणी

ओ रे सुमन तू गरूवर प्यारो, देस धरम को कवि मनखारो
सुमनजी ! गुण का पारस कर दे लोवा ने सोन कडी़.


इण चिट्ठा का साते जो फ़ोटू हे वो सन १९९४ को हे जिणमें सुमनजी पटेलजी के भेराजी सम्मान दई रिया हे.
लिखी:संजय पटेल

Thursday 16 August 2007

जिने देखी नी टूटी नाव कदी ऊ पार लगाणों कईं जाणे.

नरेन्द्रसिंह तोमर मूल रूप से तो मालवी लोक गीत गायक हैं लेकिन एक सशक्त गीतकार के रूप में भी उनकी विशिष्ट पहचान है.आज़ादी के आंदोलन में उनके गीतों ने खू़ब धूम मचाई थी..कभी उन गीतों में से कुछ रचनाएं जारी करेंगे ..आज पढि़ये उनका एक लोकप्रिय गीत जो मालवी - हिन्दी काव्य मंचों पर बहुत सराहा जाता रहा है.

जिके डुबकी लगाता नीं आवे,ऊ मोती लाणों कईं जाणे
जिने देखी नीं टूटी नाव कदी , ऊ पार लगाणों कईं जाणे


हे बायर(बाहर)ऊजळो बगळा सो, भीतर काजळ सरको काळो
कूदी कूदी ने भाषण दे, घर में पिये दारू को प्यालो
जिके अपणों नी हे खुद काँ,ऊ बाट(राह) बताणों कईं जाणे

कुर्सी का मद मे चूर हुवो,बोले तो ऐठई ने बोले
कोई साँचा रोणा रोवे तो, मकना हाथी सरको डोले
जिको दिल नी समंदर सो गेरो(गहरा) ऊ राज चलाणों कईं जाणे

सोना चाँदी की खट-पट में,जो हुइग्यो भैंसा को जाडो़ (मोटा)
फ़ूलीग्यो कोरी बादे में, खावे चूरण पीवे काढ़ो
मेहनत का पसीना में न्हायो नी, ऊ रोटी खाणों कईं जाणे

अपणा घर में तो आग लगई,अने पर घर छाणे के दौड़े
सपणा देखे गेल्या सरका, अपणा हाथे किस्मत फ़ोडे़
जिके लाय लगाणों याद फ़कत,ऊ बाग ऊगाणों कईं जाणे

जो बकतो रे 'हड़ताल करो ' 'यो पुल तोडो़ ' ' यो घर बाळो'(जलाओ)
अबे उकपे भरोसो कूण(कौन) करे जिकीं निकल्यो अकल को दीवाळो
जो फ़िरे हे उजाड्यो साँड बण्यो, ऊ खेत रखाणो कईं जाणे.

जिने देखी नी टूटी नाव कदी..ऊ पार लगाणों कईं जाणे.

नरेन्द्रसिंह तोमर